उसके चेहरे की हंसी को कोई भी समझ सकता था
हम निकले नादाँ उसकी आरजू न समझे।
चार पल की जिंदगी में एक लम्हे का साथ
बस इतनी सी जिंदगी थे ये जुस्तजू न समझे।
मैं कितना नासमझ ये समझता आखिर कौन
न हम ही समझ पाये और न ओ ही समझे।
मुहब्बत का दरिया डूब जाने की खातिर होता है
बिछड़ कर हम भी समझे … बिछड़कर ओ भी समझे
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